सुल्तानपुर जिला उत्तर प्रदेश में है और यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है. इस जिले में गोमती नदी के किनारे पर एक प्राचीन वृक्ष है, जिसे लोग ‘पारिजात वृक्ष‘ या ‘कल्प वृक्ष‘ के नाम से जानते हैं. यह वृक्ष कोई साधारण वृक्ष नहीं है, बल्कि इसे देववृक्ष भी कहा जाता है. यहां नियमित रूप से आस्थावान लोग आकर पूजा करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं. मान्यता है कि यह वृक्ष आनेवाले श्रद्धालुओं की इच्छाएं पूरी करता है।
पारिजात वृक्ष के बारे में एक रोचक कथा भी है....
एक बार देवराज इंद्र ने महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण श्रीहीन हो गए थे. स्वर्ग लोक से वैभव, समृद्धि और संपन्नता सब खत्म हो गई थी। इस समस्या का समाधान के लिए देवताओं ने असुरों की सहायता से सागर मंथन करने का निश्चय किया। सागर मंथन के परिणामस्वरूप, पारिजात वृक्ष के साथ 14 रत्न निकले, जिनमें से एक रत्न पारिजात वृक्ष था। देवराज इंद्र ने इस पारिजात वृक्ष को लेकर स्वर्ग में स्थापित किया।
एक बार भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने व्रत-अनुष्ठान के दौरान भगवान कृष्ण से पारिजात को धरती पर लाने की जिद की थी। इस पर देवराज इंद्र और भगवान कृष्ण के बीच संग्राम हुआ था। इंद्र की हार हुई और भगवान कृष्ण की जीत पर देवमाता ने उन्हें पारिजात भेंट किया था। तब से यह वृक्ष धरती पर है।
देववृक्ष पारिजात की खासियत यह है कि इस वृक्ष में फूल तो खिलते हैं, लेकिन फल नहीं लगते, इस वृक्ष का बीज नहीं होता है और ना ही इसका तना या जड़ नहीं लगता, वन विभाग ने इसके रोपण का बहुत प्रयास किया पर उनको कोई सफलता नहीं मिली।
आशा करती हूं कि आपको इस कल्पवृक्ष के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा, ऐसी ही और अनोखी जानकारियां पाने के हमारे साथ लिए जुड़े रहें।।
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